बचपन की धुंदली यादें
आज भी याद आती हैं
वो स्कूल बस में बैठकर
दूर तलक आँखों से ओझल होने का
सब मंज़र याद हैं
आरक्षण के नाम पर जलते लोग
चोरहों पर जगह जगह लगी आग
पथराव बसों पर
सब कुछ तहस नहस किया कुछ लोगो ने
नन्ही आँखों ने जो देखा
वो सब याद हैं
एक पत्थर मेरी सीट की खिड़की पर भी आया था
बस को रोका गया
हर तरफ आग ही आग थी
हम सब बच्चे रोने लगें
पर वो आवाज़ किसी के कानों में नहीं पड़ी
कुछ देर बाद फिर हमारी बस चली
पर वो यादें वही तहर गयी
वो यादें आज भी दिल को दहलाती हैं
पहले भी इंसान की कीमत नहीं थी
जानें जा रही थी
और आज भी इंसान की जान की कीमत नहीं
ऐसा आखिर क्यों ?
11 comments:
Peace cannot be kept by force. It can only be acheived by understanding-Albert Einstein
Either we humans totally lack understanding or blindfolded...not trying to change our thinking
Loved your poetic thoughts :)
This is great work...
thanks for sharing this..
Kash is sawal ka jawab hume mil paye kabhi na kabhi.....
superb!!
Childhood sensibility well expressed.
Yeh prashna aaj bhi bana hua hai ki aisa kyun?
@Poonam-great quote indeed.you have chosen appropriate words.thanks!
@Sumit-thanks!
@Arti-Kash...mil pata.
@Magiceye-thanks.
@Jagdish sir-thanks for humble words.
@Shri Ram sir-aisa kyu? true.
Nicely penned :)
It is really sad to know that... We hardly value the invaluable..!!
yes very true.
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