
एक पत्ता गिरा शाख से
जा मिला धूल में
अपना पता भूल गया हो
मिटटी की परत ने
उसका आसतित्व ही मिटा दिया
खो गया कही
पूछा उसने पेड़ की शाख पर नए हरे पत्ते से
इतना ना इतरा, ना देख मुझे इस तरह
जहाँ मैं हूँ आज, वहा कल तू होगा
तेरा वजूद भी चंद लम्हों का हैं
जी ले इसे
फिर ना यह वक़्त होगा
इस धूल में मिलकर मेरी पहचान धूल हो गयी
कुछ पता नहीं कब मैं हवां के साथ उड़ जाऊं
किस दिशा में जाऊं किस मिटटी में मिल जाऊं
ये वक़्त वक़्त की बात हैं
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