Tuesday, March 6, 2012

aastitva






एक पत्ता गिरा शाख से
जा मिला धूल में
अपना पता भूल गया हो
मिटटी की परत ने
उसका आसतित्व ही मिटा दिया
खो गया कही
पूछा उसने पेड़ की शाख पर नए हरे पत्ते से
इतना ना इतरा, ना देख मुझे इस तरह
जहाँ मैं हूँ आज, वहा कल तू होगा
तेरा वजूद भी चंद लम्हों का हैं
जी ले इसे
फिर ना यह वक़्त होगा
इस धूल में मिलकर मेरी पहचान  धूल हो गयी
कुछ पता नहीं कब मैं हवां के साथ उड़ जाऊं
किस दिशा में जाऊं किस मिटटी में मिल जाऊं
ये वक़्त वक़्त की बात हैं


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